सपने हुए चकनाचूर, दर-दर की ठोकरे खाते पहुंचे अपने घर तो अपनों में ही कहलाए परदेशी।
सपने हुए चकनाचूर, दर-दर की ठोकरे खाते पहुंचे अपने घर तो अपनों में ही कहलाए परदेशी।
लगदा उनके चलते अपने अपने घरों को लौट रहे मजदूरों की आंखों में पानी और चेहरे पर मायूसी के बादल छाए। क्योंकि अपने घरों से निकलते वक्त परदेस आते समय उनके दिल और दिमाग में बहुत बड़े बड़े ख्वाब और विचार थे , जो अक्स बात को रोना वायरस के देशव्यापी फैलाव के कारण चकनाचूर हो गए, और अब खाली हाथ लूट पीते नंगे पांव भूखे प्यासे अपने अपने घरों को लौट रहे। चौकी स्मार्ट लोक डाउन के चलते ने इतनी बड़ी दुश्वार यो का सामना करना पड़ा उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी,
लोक डाउन के चलते अपने अपने घरों को जल्द से जल्द पहुंचने की चाहत में इन बेचारे गरीबों मजलूम लोगों को अपनी अपनी कंपनियों संस्थानों से अपना जमा पैसा या वेतन तक लेने का मौका नहीं मिला, कहीं किसी ने किसी को दे दिया वेतन या बकाया पेमेंट तो वह उसका बड़प्पन है वरना अधिकांश से किसी ने भी ऐसी स्थिति में इनकी मदद नहीं की और इन्हें मजबूरी में इन्हें अपना सफर यूं ही शुरू करना पड़ा।
जैसे तैसे जुगाड़ बाजीगर इनमें से कुछ लोगों ने बसों पर पहुंच बस पकड़ने का प्रयास किया तो वहां दुश्वारियां और परेशानियों का इतना बड़ा शीला इनको करता मिला जिनके हौसले टूट गए। मगर फिर इन्होंने आत्मविश्वास बटोरा और पैदल या नंगे पांव भूखे प्यासे अपने घरों को बच्चों को साथ लेकर चल दिए। जब तक इनके पास पैसा रहा यह विचार है बिस्कुट खा कर पानी पीकर चलते रहे मौजूद धनराशि खत्म होने पर इन्हें भूख क्यों अपने घर लौटना पड़ा।
वहां पहुंचते ही इन्हें उस दर्द का एहसास हुआ जिसके बारे में सोचा भी नहीं था। अपने गांव और घर पहुंच कर दी इन्हें भयंकर पीला का सामना करना पड़ रहा है और वह पीडा है कोरोनावायरस, क्योंकि इनके अपने घर वाले गांव वाले इनके वहां पहुंचने पर इनके नजदीक आने से कतरा रहे और भयभीत हैं कहीं हम भी कोरोना की चपेट में ना आ जाए। क्योंकि यह लोग कोरोनावायरस से प्रभावित क्षेत्र से आए हैं। अब ऐसी हालत में यह जाएं तो जाएं कहां?